Monday 9 November 2015

बिहार चुनाव परिणाम का मध्यप्रदेश की राजनीति पर क्या प्रभाव पड़ेगा ?

बिहार चुनाव परिणाम का मध्यप्रदेश की राजनीति पर क्या प्रभाव पड़ेगा ?
2014 में लोकसभा चुनाव के बाद राजनैतिक हल्कों में यही माना जाता रहा कि बिहार ही पहला राज्य बनेगा जहाँ के चुनाव परिणाम यह तय करेंगे कि देश की राजनीति की नई दिशा क्या होगी ? और भाजपा के मोदी, शाह की जुगल जोड़ी का भविष्य क्या होगा ? दिल्ली और अब बिहार चुनाव परिणामो ने यह बता दिया है कि भाजपा संघठन को अपनी रणनीति पर विचार करने की जरुरत है, प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने पिछले 1.5 वर्षो में देश के विकास में जो उपब्धियाँ हासिल की वो काबिले तारीफ है परन्तु देश के आंतरिक मामलो में जो एक अविश्वास बढ़ा है उस पर भी अब ज्यादा ध्यान देने की जरुरत बढ़ गई है क्यूंकि मीडिया में लगातार अ रही असहिष्णुता की खबरों पर प्रधानमंत्री मोदी को बोलने की जरुरत भी आन पड़ी है तो वही संघठन को भी चाहिए कि ऐसे नेताओ पर नकेल कसे जो गाहे बगाहे जबरन की फिजूल बयानबाजी कर सुर्खियाँ बटोर रहे है,और भाजपा की नीव कमजोर करने का काम करने का काम कर रहे है , प्रधानमंत्री के ही शब्दों में बात करे तो “सबका साथ-सबका विकास” में हमे सबके साथ की ही जरुरत पड़ेगी, किसी एक को साथ लेकर चलने की बात पर देश में अब विकास संभव नही है
यहाँ बात मध्यप्रदेश के सन्दर्भ में हो रही है तो यह भी जान लेना जरुरी है कि प्रदेश में भी पिछले लगभग 12 वर्षो से भाजपा की सरकार है और 10 वर्षो से मुख्यमंत्री शिवराज, सरकार का सफलतम क्रियान्वयन कर रहे है , यहाँ यह भी कहना गलत नही होगा की अटल बिहारी बाजपेइ के बाद शिवराज ही भाजपा के एक मात्र ऐसे नेता है जिन पर मुस्लिमो का विस्वाश हमेशा कायम रहा है, शिवराज ने अपनी संवेदनशीलता के चलते हर वर्ग का विश्वाश कायम कर विकास की द्रष्टि से सफल कदम उठाये है, हालाँकि केंद्र में नरेन्द्र मोदी की सरकार बनने के बाद जिस प्रकार अमित शाह और मोदी ने मिलकर भाजपा संघठन के वरिष्ठ नेताओं को एक एक कर किनारे लगाना शुरू किया तो उसी दिन से यह भी माना जाने लगा कि शिवराज, वसुंधरा और रमन सिंह के भी दिन जल्दी पूरे होंगे, मीडिया भी समय समय पर यह खबरे दे रहा था की बिहार चुनाव में मोदी शाह सफलता हासिल करते है तो इन तीनो को केंद्र में बुलाकर अपने गुट के नेताओं को यहाँ आसीन कराएँगे, यह भी ध्यान देने योग्य बात है कि मोदी जब मुख्यमंत्री थे तो शिवराज भाजपा में ऐसे दुसरे नेता रहे जिन्हें हमेशा से राज्य की जनता से प्यार और आशीर्वाद मिलता रहा, शिवराज की जनकल्याणकारी नीतियों की वजह से ही भाजपा की पहुच मध्यप्रदेश में गाँव तक बढ़ी, वहीँ भाजपा संघठन के केंद्र में तत्कालीन नेता रहे आडवानी ने भी खुले तौर पर यह कहना शुरू कर दिया था कि एन डी ए में मोदी के नाम पर सहमति नहीं बनती है तो शिवराज प्रधानमंत्री पद के लिए दुसरे विकल्प होंगे, मोदी के नाम पर ही नितीश ने असहमति जताकर एन डी ए से जे डी यू को अलग किया था
आज जब बिहार के चुनाव में नितीश और लालू की सरकार बनना तय हो गया है तो इसके उलट मध्यप्रदेश के राजनैतिक हल्कों , और मीडिया में कुछ दिन पहले ये खबरे चल रही थी कि भाजपा का केंद्रीय नेतृत्व जल्द ही शिवराज को केंद्रीय मंत्रिमंडल में कृषि मंत्रालय की जिम्मेदारी सौपेगा लेकिन बिहार के जैसे नतीजे आये है तो अभी इन खबरों पर विराम स्वतः ही लग जायेगा, हालाँकि जब से मोदी सरकार केंद्र में सत्तासीन हुई है तब से मध्यप्रदेश को न तो कोई विशेष लाभ हुआ है और न ही राज्य को केंद्र से मिलने वाली आर्थिक मदद पूरी तरह से नसीब हुई है, आज जब प्रदेश में सूखे के भयावह हालात बने हुए है ऐसे में शिवराज और शिवराज के मंत्री मोदी सरकार के सामने लगातार आर्थिक मदद के लिए नार्थ ब्लाक के चक्कर पे चक्कर काट रहे है तो वही नरेन्द्र मोदी मध्यप्रदेश के किसानो की सुध लेने की बजाय बिहार में 1 लाख 65 हज़ार करोड़ , तो जम्मू कश्मीर में 80 हज़ार करोड़ देने की बात कर रहे है परन्तु मध्यप्रदेश को देने के लिए 2500 करोड़ रूपए भी नही है जो की प्रदेश के कई समय से लंबित पड़े हुए है, ऐसे में आज नही तो कल हालात भाजपा विरोधी बन जायेंगे, शिवराज तो फिर भी इन हालात से भाजपा को निकालने के लिए पुरजोर कोशिश कर रह है , किसान को राहत देने के लिए विधानसभा का विशेष सत्र बुलाकर अनुपूरक बजट को स्वीकृत किया जा रहा है तो प्रदेश में निवेश के लिए कहीं अरब तो कहीं जापान कोरिया के दौरे कर रहे है , माहौल जो भी हो मोदी को भी चाहिए कि जिस विकास की वो बात कर रहे है वो राज्यों से ही होकर जाता है , आज राज्य सभा में भाजपा का बहुमत नही है और ऐसे में मोदी सरकार को भी चाहिए कि विदेश नीति से इतर राज्यों की सुध लेना शुरू करे और चुनाव में सफल होकर राज्यसभा से उन बिलों को पारित करा सके जिससे मोदी के विकसित भारत के सपने को साकार किया जा सके , साथ ही भाजपा केंद्रीय संघठन और नागपुर में संघ भी अब इस बात पर गौर करें कि जिन राज्यों में भाजपा की सरकार है वहां विकास की परियोजनाओं पर विशेष ध्यान दिया जाये जिससे इन राज्यों के कार्यकर्ताओं और जनता में भाजपा के प्रति विस्वास बना रहे
बहरहाल आज के परिणामो से हम इस निष्कर्ष पर तो पहुच ही सकते है कि भाजपा संघठन शीघ्र ही एक चिंतन बैठक कर पार्टी की नीतियों पर विचार करेगा और मोदी शाह की जुगल जोड़ी से आगे निकलकर अन्य संभावनाओं पर भी गौर करेगा जिससे आने वाले समय में भाजपा शाषित राज्यों में विकास की उन संभावनाओं की परिकल्पनाओं को साकार किया जा सकेगा जिन्हें मोदी ने अपने 2014 के लोकसभा के चुनावो के भाषणों में समाहित कर चुनाव में जीत हासिल की थी, अब रही बात मध्यप्रदेश की तो बिहार चुनाव के परिणाम आने के बाद शिवराज की कुर्सी को हाल फ़िलहाल अब कोई खतरा दिखाई नही दे रहा लेकिन शिवराज को भी चाहिए कि अब खेती को लाभ का धंधा बनाने के साथ राज्य में औद्योगिक द्रष्टि से विकास संभव हो सके इसके लिए प्रयासों में तेज़ी लानी होगी और यहाँ के युवाओं को रोजगार नसीब हो जिससे आने वाले 2018 के विधानसभा चुनाव में जनता जनार्दन एक बार फिर से भाजपा और शिवराज के प्रति अपना प्यार और आशीर्वाद जता सके

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