Wednesday 17 August 2016

क्या आनंदी बेन होंगी मध्यप्रदेश की दूसरी महिला राज्यपाल?

   क्या आनंदी बेन होंगी मध्यप्रदेश की दूसरी महिला राज्यपाल?
-सत्येंद्र खरे
            मध्यप्रदेश के राज्यपाल रामनरेश यादव का कार्यकाल 9 सितंबर को खत्म हो जाएगा, यूं तो उनके जाने और बदलने के किस्से उनके कार्यकाल के दौरान अक्सर सुर्खियां बटोरते रहे लेकिन राम नरेश यादव राज्यपाल की कुर्सी से टस से मस न हुए l केंद्र में मोदी सरकार के आने के बाद भी अनेक राज्यो के राज्यपाल तो बदले गए लेकिन हृदय प्रदेश के महामहिम अपने पद पर बरकरार बने रहे l अधिक उम्र और खराब स्वास्थ्य होने के बावजूद प्रदेश सरकार की परस्ती ने उन्हे बचाए रखा तो राजनैतिक हल्कों में ये भी चर्चा भी गर्म रही कि वो मीसा बंदी है और भाजपा की केंद्र सरकार भी मीसा बंदी होने की दुहाई देकर उन्हे हटाना नहीं चाहती l अब जब उनका कार्यकाल स्वतः ही समाप्त हो रहा है तो प्रदेश की राजनैतिक गलियारो में ये चर्चा भी जोरों पर है कि प्रदेश का अगला राज्यपाल कौन होगा ?
      कल केंद्र सरकार की अनुशंसा पर राष्ट्रपति ने अंडमान निकोबार के लेफ्टिनेंट गवर्नर के साथ तीन राज्यो पंजाब, असम और मणिपुर में नए राज्यपालो की नियुक्ति की है, इन चारो नए नामो में ध्यान देने वाली बात ये रही कि इसमें आनंदी बेन का नाम नहीं है l पिछले दिनो जिस प्रकार गुजरात की तत्कालीन मुख्यमंत्री आनंदी बेन ने पार्टी लाइन पर चलते हुए अधिक उम्र की वजह से अपना इस्तीफा दिया तो बाज़ार में ये हवा बन चुकी थी कि आनंदी जल्द ही किसी राज्य कि राज्यपाल नियुक्त कर दी जाएगी l इस खबर को ज़ोर इसलिए भी दिया जा सकता है कि अभी हाल ही में मोदी सरकार के पहले मंत्रिमंडल विस्तार के दौरान ये देखा गया कि 75 वर्ष से अधिक उम्र होने के चलते नज़मा हेप्तुल्लाह से अल्पसंख्यक कल्याण मंत्री के पद से इस्तीफा मांगा गया था और उन्हे अब मणिपुर का राज्यपाल नियुक्त किया गया है, ऐसे में आनंदी कहाँ की राज्यपाल बनती है ये देखना बाकी है परंतु जैसे समीकरण अभी बने हुए है उसमें ये माना जा रहा है कि गुजरात से लगे मध्यप्रदेश का उन्हे राज्यपाल बनाया जा सकता है l
प्रदेश में राज्यपाल की नियुक्ति को लेकर कुछ राजनैतिक समीकरण देखे जाए तो राज्य और केंद्र दोनों जगह भाजपा की सरकार है, एक तरफ केंद्र में भाजपा के सबसे सशक्त मुख्यमंत्री रहे नरेंद्र मोदी अब देश के प्रधानमंत्री है तो वही मध्यप्रदेश में 10 साल से ज्यादा का समय बतौर मुख्यमंत्री बिता चुके शिवराज अब भी राज्य के मुखिया के पद पर काबिज है l अटल आडवाणी के करीबी रहे शिवराज, वर्ष 2014 के केंद्रीय चुनाव के पूर्व मोदी के एक विकल्प के तौर पर भी देखे गए कि अगर एनडीए के दल नरेंद्र मोदी को प्रधानमंत्री के पद पर स्वीकार नहीं करते तो शिवराज का नाम आगे बढ़ाया जाएगा l बस यहीं कुछ खटास नरेंद्र मोदी और शिवराज सिंह चौहान के बीच देखने को जरूर मिली मगर दोनों नेताओं ने कभी एक दूसरे पर न तो प्रत्यक्ष और न ही अप्रत्यक्ष तौर पर कुछ बोला या कहा होगा, लेकिन मोदी के प्रधानमंत्री बन जाने के बाद जरूर राजनैतिक गलियारो में शोर रहा कि नरेंद्र मोदी और अमित शाह मध्यप्रदेश में नेत्रत्व परिवर्तन कर शिवराज को केंद्र में बुला सकते है l
      व्यापम मामले को लेकर जब शिवराज ने सीबीआई द्वारा जांच कराने की घोषणा की तो ये माना जाने लगा कि केंद्र की मोदी सरकार इस बार शिवराज को प्रदेश से अलग कर ही मानेंगी, लेकिन यहाँ भी शिवराज अपने व्यवहार, प्रदेश के विकास और संवेदनशीलता से मोदी के विश्वास को जीतने में कामयाब हुए l मोदी के इस साल अब तक प्रदेश के चार दौरे हो चुके है और उन्होने हर मंच से शिवराज की खुलकर प्रशंसा ही की, कही ऐसा देखने को नहीं मिला कि इन दोनों नेताओं के बीच कोई मतभेद है और हाल ही में केंद्र में हुआ मंत्रिमंडल विस्तार में शिवराज को केंद्रीय कृषि मंत्री के तौर पर नाम न होना, जिसकी चर्चाए बहुत जोरों पर थी तो इस खबर को भी विराम दिया जा सकता है कि हाल फिलहाल शिवराज केंद्र में नहीं जा रहे और वे बतौर मुख्यमंत्री अपना कार्यकाल जारी रखेंगे l
ऐसे में जब शिवराज मोदी के लोकप्रिय मुख्यमंत्री में शुमार हो चुके है और आनंदी जो उनकी विश्वासपात्र मुख्यमंत्री रही है, तो प्रधानमंत्री भी चाहेंगे कि आनंदी पटेल को मध्यप्रदेश भेजकर शिवराज को फ्रीहैंड दिया जाए l हालांकि आनंदी बतौर मुख्यमंत्री तो कुछ खासा कमाल नहीं कर पायी लेकिन जब नरेंद्र मोदी गुजरात के मुख्यमंत्री हुआ करते थे तो राज्य की सफल योजनाओं के पीछे आनंदी ही हुआ करती थी l ऐसे में जब उनके कार्यकाल के दौरान भाजपा के गढ़ कहे जाने वाले गुजरात में पटेल आंदोलन, ऊना की घटना और दलितो द्वारा बड़े स्तर पर विरोध प्रदर्शन होना प्रारम्भ हो गए तो उन्होने अचानक इस्तीफे की पेशकश कर केंद्रीय नेत्रत्व को सकते में ला दिया l ये बात भी हमेशा स्पष्ट रही कि नरेंद्र मोदी के खास रहे अमित शाह जो अब भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष है, गुजरात में जब वे मंत्री और भाजपा संघठन में रहे तब भी आनंदी की उनसे कभी पटरी नहीं बैठी और अब बतौर मुख्यमंत्री आनंदी के कार्यकाल के दौरान पटेल आंदोलन ने राज्य में ज़ोर पकड़ा तो केन्द्रीय नेत्रत्व की ओर से उन पर इस्तीफा देने का अप्रत्यक्ष दवाब बनाया गया l इस दौरान आनंदी का मध्यप्रदेश से भी कनेक्शन देखने को मिला, उज्जैन में सिंहस्थ कुम्भ का आयोजन चल रहा था और गुजरात में पटेल आंदोलन का शोर l आनंदी का उज्जैन में महाकालेश्वर के दर्शन और कुम्भ स्नान में आना तय हुआ तो इसी दौरान भाजपा के केंद्रीय नेत्रत्व में ठीक-ठाक दखल रखने वाले और प्रदेश के भइयू महाराज जो कि एक दुर्घटना मे थोड़ा चोटिल हुए थे, इंदौर मे उनकी कुशलक्षेम पूछने के लिए उनसे मिलने आनंदी बेन पहुंची और ऐसा माना गया कि उन्होने भइयू महाराज से आग्रह भी किया कि पटेल आंदोलन के चलते उनके इस्तीफे की अफवाह को रोकने में वो केंद्र के नेत्रत्व में दखल दे  l इसके साथ आनंदी का प्रदेश से दूसरा कनेक्शन राज्य में गुजराती समुदाय का बहुतायत में होना है l  
      पटेल आंदोलन के दौरान ही भाजपा के गढ़ गुजरात में सेंध लगना शुरू हो गई थी और इसे ऊना की घटना ने और ज़ोर दे दिया, ऐसे में बात ये सामने आने लगी कि क्या प्रधानमंत्री अपना किला ही नहीं बचा पाएगे ? इन सब के बीच जो समीकरण गुजरात में बदले उनसे मध्यप्रदेश को प्रभावित भी होना था क्यूंकि गुजरात से लगे मध्यप्रदेश के मालवा और निमाड में एक अच्छी जनसंख्या गुजराती लोगो की है l आने वाले समय में आनंदी अगर प्रदेश की राज्यपाल बनती है तो 2018 में गुजरात विधानसभा चुनाव की दृष्टि से भी ये उचित रहेगा और 2019 के मध्यप्रदेश विधानसभा चुनाव में मालवा निमाड अंचल में गुजराती समुदाय का समर्थन भी भाजपा को आसानी से मिल सकेगा l मोदी अगर आनंदी का नाम मध्यप्रदेश के राज्यपाल के नाम पर आगे बढ़ाते है तो एक पंथ दो काज को महत्ता मिल जाएगी और प्रदेश में 1989-90 में रही सरला अग्रवाल के बाद दूसरी महिला राज्यपाल मिलना तय हो जाएगा, बस इंतज़ार है तो 8 सितंबर 2016 का !!!!! 
      -लेखक स्वतंत्र पत्रकार है
09993888677




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http://main.hindusthansamachar.com//Encyc/2016/8/18/%E0%A4%95%E0%A5%8D%E0%A4%AF%E0%A4%BE-%E0%A4%86%E0%A4%A8%E0%A4%82%E0%A4%A6%E0%A5%80-%E0%A4%AC%E0%A5%87%E0%A4%A8-%E0%A4%B9%E0%A5%8B%E0%A4%82%E0%A4%97%E0%A5%80-%E0%A4%AE%E0%A4%A7%E0%A5%8D%E0%A4%AF%E0%A4%AA%E0%A5%8D%E0%A4%B0%E0%A4%A6%E0%A5%87%E0%A4%B6-%E0%A4%95%E0%A5%80-%E0%A4%A6%E0%A5%82%E0%A4%B8%E0%A4%B0%E0%A5%80-%E0%A4%AE%E0%A4%B9%E0%A4%BF%E0%A4%B2%E0%A4%BE-%E0%A4%B0%E0%A4%BE%E0%A4%9C%E0%A5%8D%E0%A4%AF%E0%A4%AA%E0%A4%BE%E0%A4%B2----%E0%A4%B8%E0%A4%A4%E0%A5%8D%E0%A4%AF%E0%A5%87%E0%A4%82%E0%A4%A6%E0%A5%8D%E0%A4%B0-%E0%A4%96%E0%A4%B0%E0%A5%87.aspx?NB=&lang=1000&m1=&m2=&p1=&p2=&p3=&p4= http://m.dailyhunt.in/news/india/hindi/tez-news-epaper-teznews/aanandi-ben-hongi-madhy-pradesh-ki-dusari-mahila-rajyapal--newsid-56841190

Friday 29 July 2016

मोदी जी , काश्मीर मे चल क्या रहा है ?

मोदी जी , काश्मीर मे चल क्या रहा है ?
-सत्येंद्र खरे
            31 जुलाई को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी मन की बात कार्यक्रम से एक बार फिर देश को संबोधित करने जा रहे है, हर बार की तरह इस बार भी प्रधानमंत्री लोगो को जागरूक करने के संदेश देश की जनता को देंगे लेकिन इस बार मोदी जी के मन मे काश्मीर को लेकर क्या बात है वो महत्वपूर्ण होगी, हो सकता है प्रधानमंत्री इस संवेदनशील मुद्दे को मन की बात मे रखे भी न, परंतु राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर ये विषय फिलहाल अपनी महत्ता बनाए हुए है, आतंकवादी बुरहान वानी की मौत के बाद पूरे जुलाई के महीने कश्मीर आतंक के साये मे रहा, लगातार विरोध, पेलेट्स गन, पाकिस्तान की गीदड़ फफ़्तिया घाटी मे गूँजती रही, भारत ने भी इस विरोध को दबाने मे अपनी ताकत झोंक दी, कश्मीर मे कई तरह की पाबंदिया लगाने के साथ भारत इस विरोध को दबाने मे कामयाब हुआ, परंतु सवाल ये उठता है कि इस तरह से कब तक चलता रहेगा ? आखिर कब तक काश्मीरी युवा पड़ोसी मुल्क और चरमपंथियों के बहकावे मे आकार अपने ही देश को नुकसान पहुचाते रहेंगे? इन तमाम विरोधो के बावजूद भी भारत अपनी विदेश नीति के जरिये पाकिस्तान की हर चाल को कमजोर करने मे कोई कोर कसर नहीं छोड़ रहा है, पूरे महीने पाकिस्तान से चली टकराव भरी गतिविधियों के बावजूद देश के गृहमंत्री राजनाथ सिंह 3 अगस्त को सार्क की बैठक मे हिस्सा लेने पाकिस्तान जा रहे है, बैठक से क्या निष्कर्ष निकलेगा ये तो आने वाला समय ही बताएगा बहरहाल मन की बात मे मोदी कश्मीर राग छेड़ते है या नहीं वो तो 31 जुलाई को पता चल ही जाएगा पर उसके पहले कश्मीर मे अब तक क्या हुआ उसे सिलसिले वार जान लेते है l
             भारत पाक बटवारे के समय से चल रही कश्मीर कि लड़ाई अब तक निर्णायक दौर पर नहीं पहुच पायी है और शायद आसानी से पहुचे भी नहीं क्यूंकि पाकिस्तान ने समय समय पर इस पूरे क्षेत्र को अपनी नापाक चालो से नुकसान पहुचाया है तो वही अब तक की केंद्र सरकारे भी इस क्षेत्र की जनता का पूरा विश्वास जीत पाने मे नाकामयाब साबित हुई हैघाटी भी समय समय पर तमाम घटनाक्रमो मे दहलती रही है फिर चाहे वो 1953 मे शेख अब्दुल्ला को प्रधानमंत्री पद से हटाना, 1964 के काश्मीर दंगे, 84 मे फारुख अब्दुल्ला को मुख्यमंत्री पद से हटाया जाना, 87 मे कश्मीर चुनाव के समय धांधलियाँ या फिर 1989 से चरमपंथियों और आतंकवादियों द्वारा शुरू की गई भारत के खिलाफ जंग जो आज तक जारी है,इन सारी घटनाओं मे अलगाववादियों की भी महत्वपूर्ण भूमिका रही जो कश्मीरियों को अपने हित के लिए बरगलाते रहे, इन सारे घटनाक्रमो मे परोक्ष रूप से पाकिस्तान के हाथ होने के सबूत मिलते रहे है l 1999 मे हुए कारगिल युद्ध मे तो पाकिस्तान को मुंह की खानी पडी थी और संजोग देखिये कि तब भी पाक प्रधानमंत्री नवाज शरीफ, भारत मे एनडीए की केंद्र सरकार और जुलाई का महीना था और आज भी वही स्थिति सामने है आज जब केंद्र सरकार कश्मीर मे विरोध को दबाने के लिए कड़े निर्णय ले रही है तो न तो अलगवादियों को ये बात पच रही है, न पाकिस्तान को और न ही विरोधी ताकतों को l पाकिस्तान समर्थित आतंकियों की मौत के बाद जुलाई भर कश्मीर मे चली टकराव की स्थिति और भारतीय सेना द्वारा आतंकियों पर की गई खुली कार्यवाही को लेकर पाकिस्तान को ही अब चिंतन बैठक करने की आवश्यकता आन पड़ी है, 2 अगस्त को पाकिस्तान संसद के सयुंक्त सदनो को बुलाकर कश्मीर पर चिंतन बैठक करने वाला है l
            पाकिस्तान की चिंता का कारण जो आज है उसकी शुरुआत तो भारत मे 2014 के चुनाव के पहले ही हो गई थी, साल 2014 के केन्द्रीय चुनाव के पहले गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी को भाजपा ने प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार घोषित किया, कांग्रेस पहले ही भ्रष्टाचार के कीर्तिमान स्थापित कर जनता का विश्वास खो चुकी थी और ऐसे मे नरेंद्र मोदी चुनाव प्रचार से अच्छे दिन आने वाले है का नारा बुलंद कर रहे थे और पड़ोसी मुल्क को उसी की भाषा मे जवाब देने की बाते चैनल दर चैनल कर रहे थे, देश की जनता मे उम्मीद जग रही थी की शायद ये प्रधानमंत्री कश्मीर की समस्या का हल निकालने मे कामयाब होंगे, प्रधानमंत्री बनने के साथ ही नरेंद्र मोदी ने शपथ ग्रहण के समय पाकिस्तान समेत पड़ोसी मुल्को को अपने शपथ ग्रहण मे बुलाकर विदेश नीति मजबूत करने और अपनी कूटनीतिक चालो को चलना शुरू कर दिया, मोदी ने पिछले दो सालो मे ताबड़तोड़ विदेशी दौरे कर भारत की खोयी साख को भी मजबूत किया है और पाकिस्तान द्वारा आतंकवाद को बढ़ावा देने की नीतियों को दुनिया के सामने रखा, आज जब काश्मीर मे भारत सरकार अपनी मजबूत विदेश  नीति के बल पर खुलकर आतंक का दमन करने सामने आई है तो यहाँ ये कहना गलत नहीं होगा जब एक समय प्रधानमंत्री इन्दिरा गांधी ने भी मजबूत विदेश नीति बनाकर पाकिस्तान को तोड़कर बांग्लादेश बनाया था इन्दिरा गांधी ने भी इसी तरह अपना पक्ष रखने और पाकिस्तान को तोड़ने को लेकर अमेरिका सोवियत संघ समेत तमाम देशो का दौरा किया और विदेशी कूटनीति को मजबूत कर मुक्तिवाहिनी भारतीय सेना को पूर्वी पाकिस्तान के अंदर भेजा और भारत ने अपने दम पर ही पाकिस्तान के टुकड़े कर ये घोषित कर के दिखा दिया कि बांगलादेश दुनिया का नया राष्ट्र होगा l
            आज जब काश्मीर समस्या को सुलझाने मे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी लगे हुए है तो उनके विदेशी दौरो को हम पाकिस्तान और कश्मीर विषय से जोड़कर देख सकते है क्यूंकि पिछले साल हुए कश्मीर चुनाव के बाद भाजपा ने धुर विरोधी पीडीपी को समर्थन देकर ये तो साबित कर दिया है कि भाजपा काश्मीर मे मिली जीत को हर हाल मे भुनाना चाहती है,कश्मीरी पंडितो की घर वापीसी को लेकर भी इस दौर मे सकारात्मक प्रभाव देखने को मिले है, 2014 से लेकर अब तक पठानकोट स्थित सेना के केंट को छोड़कर न तो काश्मीर मे कोई बड़ी आतंकी वारदात हुई और न ही समूचे देश मे और ऐसे मे अगर काश्मीर समस्या को सुलझाना है तो काश्मीर की समस्या का हल भी काश्मीर मे सरकार के रहते होते जाते दिखाई देता है न की बाहर रहने से आज जब कश्मीर मे उबाल है तो पीडीपी भी ऐसे किसी भी बयान को देने मे और कोई कदम उठाने से पहले दस बार सोच रही है कि कहीं कोई गलत कदम से गठबंधन को फर्क तो नहीं पड़ेगा, मतलब मोदी की ऐसी चाल की चित भी मेरी और पट भी मेरी l
            प्रधानमंत्री मोदी ने अपनी नीतियों के बल पर कश्मीर को लेकर पाकिस्तान के साथ साथ पीडीपी,अलगाववादियों, विरोधी ताकतों को घेर रखा है क्यूंकि मोदी जिन वादो को लेकर सत्ता मे आए थे वो आज 26 महीने बाद भी पूरे होते दिखाई नहीं देते है,  सरकार के पास 34 महीने अभी और बाकी है ऐसे मे आकलन किया जाए तो कश्मीर और विदेश नीति ही है जिसमे भारत को फिलहाल ठीक ठीक सफलता मिली है, भारतीय सेना के द्वारा म्यामार के अंदर किया गया ऑपरेशन हो, सीरिया से भारतीयो को निकालने का ऑपरेशन या हाल ही मे दक्षिण सूडान से भारतीयो को निकालने का ऑपरेशन जिसके कसीदे तो पढे जा सकते है परंतु अब तक न तो विदेश से काला धन लाने मे मोदी सरकार कोई खास सफलता हाथ लगी है  और न ही महंगाई को कम करने मे l अच्छे दिनो के सपने तो फिलहाल सपने मे भी नहीं आ रहे है तो ऐसे मे भाजपा आने वाले केन्द्रीय चुनाव मे जिन मुद्दो को लेकर जाएगी उसमे काश्मीर की समस्या को हल करने की दिशा मे सकारात्मक कदम उठाना ये एक मुद्दा हो सकता है और इस मुद्दे को भुनाने के लिए सरकार हर संभव प्रयास कर कश्मीर समस्या को सुलझाने की दिशा मे एक नया कदम उठाएगी   
            आज जब पूरे जुलाई के महीने देश मे जनता के मन मे सवाल उठते रहे कि काश्मीर मे चल क्या रहा है, ऐसे मे मोदी जी 31 जुलाई को मन की बात कार्यक्रम मे कश्मीर को लेकर क्या बताएँगे ? पिछले एक महीने मे काश्मीर से तमाम तरह की बाते जो सोशल और मेनस्ट्रीम मीडिया के जरिये सामने आई है मसलन भारतीय सेना आतंकियो को ढूंढ ढूंढ का मार रही है, भारतीय सेना काश्मीर के निर्दोष परिवारों को अपना निशाना बना रही है, तो एक जिज्ञासा बनती है कि आखिर इन बातों की सच्चाई क्या है ? पाक और चीन मिलकर पाक अधिकृत काश्मीर मे सयुंक्त मार्च पास्ट कर रहे है,भारत सरकार द्वारा पूरे घाटी क्षेत्र मे कर्फ़्यू लगाया जाता है मीडिया पर पाबंदी लगाई जा रही है, इंटरनेट काटा जा रहा है तो सवाल ये बनता है कि घाटी मे 1999 के बाद क्या एक बार फिर जंग का माहौल है?  इसी दौर मे जब काश्मीर मे माहौल संवेदनशील बना हुआ है तब चीन उत्तराखंड के चमौली क्षेत्र मे 200 मीटर अंदर तक आकार चहल कदमी कर रहा है, तो क्या पाक और चीन मिलकर भारत को घेरने मे लगे है तो इन सब के बीच सीधा सवाल ये निकल कर आता है कि मोदी जी बताइये की तमाम कूटनीतिक बिसातों के बावजूद आखिर काश्मीर मे क्या चल रहा है ?  
            -लेखक स्वतंत्र पत्रकार और स्तम्भ लेखक है