Sunday 29 November 2015

(मुख्यमंत्री शिवराज के 10 साल –भाग 2) शिवराज सिंह चौहान :- व्यक्तित्व, राजनीति और प्रसाशनिक नेत्रत्व

(मुख्यमंत्री शिवराज के 10 साल –भाग 2)
शिवराज सिंह चौहान :- व्यक्तित्व, राजनीति और प्रसाशनिक नेत्रत्व
            मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने अपनी संवेदनशीलता के बल और विकास के कर्तव्य पथ  पर चलकर 10 वर्ष पूरे कर लिए है, और इस कालखंड के दौरान देखने लायक जो मुख्य रही वो यह कि मध्यप्रदेश के इतिहास मे किसानो के सर्वाधिक कल्याण के कार्यक्रम शिवराज सरकार ने ही चलाये, खेती को लाभ का धंधा बनाने के इस जुनून ने शिवराज को किसानो का मसीहा तक बना दिया, शिवराज स्वयं एक किसान पुत्र है इसलिए वे भली भांति जानते थे कि किसानो कि समस्याए क्या है ? और उन समस्याओं के हल निकाल दिये जाए तो प्रदेश के अन्नदाता क्रषी विकास मे प्रदेश को नई उचाइयाँ प्रदान कर सकते है, शिवराज ने पिछले 10 वर्षो मे इस ओर बहतरीन काम करके भी दिखाया जिसका परिणाम हमे प्रदेश कि क्रषी विकास दर 24.99 प्रतिशत तक पेहुचकर न केवल देश मे अपितु विश्व मे सर्वाधिक दर्ज कि गई, शिवराज के क्रषी विकास की दिशा मे किए गए अनेकों अनेक योजनाओं का सार्थक परिणाम यह रहा कि किसानो कि आर्थिक स्थिति पहले कि अपेक्षा मजबूत हुई और साथ ही प्रदेश को भी पिछले तीन वर्षो से लगातार केंद्र सरकार के द्वारा “क्रषी कर्मण पुरुष्कार” से सुशोभित किया जा रहा है l शिवराज सिंह किसानो और मजदूरो से संवाद करते हुए अक्सर एक जुमले का जिक्र करते है कि “राम कि चिराइया राम के खेत, खाओ री चिरइयों भर भर पेट” , और उन्होने इस जुमले को जमीन पर सार्थक करने का काम भी किया है
            शिवराज ने हमेशा मजदूर और किसानो के हित के लिए अपनी राजनीति को सर्वोपरी रखा, बचपन मे ही किसान और मजदूरो के हितो कि रक्षा करने के गुण बाल शिवराज मे दिखाई देने लग गए थे, ऐसे ही एक घटना का जिक्र आज भी स्वयं शिवराज सिंह चौहान बड़े रोमांचकारी, हंसी,ठिठोली के साथ अनौपचारिक चर्चाओं मे करते दिखाई देते है, वो ठेठ भाषा बोली के साथ बताते है कि जब वे 13  साल कि उम्र से रहे तब गाव मे मजदूरन को खेत मे काम करवे के लाने ढाई पाई रोजाना मिलत रही और मजदूरन को इतने कम पईसा मे गुजारा नहीं हो पात रहो तब मैंने खुदई आगे बढ़ के मज़दूरन को इकट्ठों करो और कई कि ढाई कि जगह पाँच पाई मांगो और नारा लगवाओ कि “पाच पाई नहीं तो काम नहीं” !!!! मज़दूरन ने भी हमसे कही कि मान लो हमाइ बात न मानी गई तो ???? तब मैंने कही कि थोड़े दिना कर्रे तो हो लो .... बस फिर का हतो शाम मे पेट्रोमैक्स जलाए , कंधे मे धरे और गाव के चक्कर के साथ मज़दूरन ने नारा लगावों शुरू कर द्ये “हमाओ नेता कैसा हो, शिवराज जैसा हो ” और “पाँच पाई नहीं तो काम नहीं” !!!! अब गाव के चक्कर लगाई रहे थे कि अपने घर के सामने जा पहुचे, हम भी आगे आगे और मजदूर पीछे पीछे , इतने मे हमाए घर के दरवाजा खुले और चाचा बड़ी सी सटइया लेकर बाहर, मोहे समझ मे आ गई कि शिवराज अब तेरी खेर नहीं, और इतने मे पीछे खड़े मजदूर जो कछु देर पहले नारा लागा रहे थे – वे सब नदारद , चाचा अंदर ले गए, पिटाई जो भई सो भई , सज़ा के तौर पे घर पे कटी रखी फसल को दामन करवाया सो अलग, खैर इस घटना का परिणाम ये रहा कि कुछ दिन बाद मजदूरो कि इस समस्या पर गाव वालो ने गौर किया और हमारा पहला आंदोलन सफल रहा l
             13 वर्ष के जिस शिवराज ने अपने नेत्रत्व मे गाव के मजदूरो को संघठित कर सफल आंदोलन किया अब वही शिवराज सफल प्रसाशनिक नेत्रत्व कर किसानो मजदूरो के लिए योजनाए बनाकर उनका सफल क्रियान्वयन कर रहे है, वर्तमान परिवेश मे देखने लायक एक बात और भी है कि  आज प्रदेश मे एक बड़ा इलाका सूखा ग्रषित है, अगर शिवराज सरकार ने पिछले 10 वर्षो के दौरान सिचाई का रकबा साढ़े सात लाख हेक्टेयर से बढ़ाकर 27 लाख हेक्टेयर तक नहीं पहुचया होता तो हालत और भी भयावह होते, नर्मदा क्षिप्रा के साथ अब पार्वती , और काली सिंध को भी नर्मदा से जोड़ने कि दिशा मे तेजी से प्रयास किए जा रहे है, वही बुंदेलखंड के पन्ना छतरपुर और टीकमगढ़ जिलो मे सिचाई हेतु केन बेतवा लिंक परियोजना को कैसे धरातल पर लाया जाए इसके लिए शिवराज के प्रयास जारी है, आज जब किसान ओला पाला, सूखा और अति व्रष्टि से व्यथित है ऐसे मे शिवराज अपने ह्रदय कि समवेदनाओं के साथ प्रदेश के किसानो का मनोबल ऊंचा करने के लिए बार बार यही कह रहे है कि “साल हारे है,ज़िंदगी नहीं हारने दूँगा” और इस वाक्य को चरितार्थ करने हेतु किसानो की  कर्ज माफी, अस्थायी बिजली कनैक्शन,फसल बीमा की राशि का त्वरित वितरण, फसलों पर निर्भरता कम हो इसके लिए आय के अन्य साधनो एवं श्रोतों पर काम करने के लिए आदेश एवं विधानसभा का विशेष सत्र बुलाकर किसानो के कल्याण हेतु अनुपूरक बजट पास करा रहे है
              शिवराज के संवेदनशीलता और कार्यशैली की बानगी क्रषी विकास तक ही सीमित नहीं रही उन्होने अपने प्रसाशनिक नेत्रत्व के बल पर देश के दिल को पर्यटन की द्रष्टि से भी विकसित करने के लिए अभूतपूर्व काम किए है, आज पूर्व की तुलना मे मध्यप्रदेश आने वाले पर्यटको की संख्या बढ़ी है जिसके फलस्वरूप हमारे पर्यटन क्षेत्रो मे रहने वाले युवको को रोजगार भी मिला है, विश्व धरोहर सांची, भीमबैठका और खजुराहो के विकास के साथ छोटे छोटे पर्यटन स्थल जैसे मांडू, चँदेरी, चित्रकूट, पन्ना, महेश्वर और ओंकारेश्वर इत्यादि को प्रदेश के पर्यटन नक्शे मे लाकर इस और ध्यान दिया जा रहा है, टाइगर स्टेट कहे जाने वाले इस प्रदेश मे शिवराज सरकार तानसेन समारोह, महेश्वर महोत्सव, कालीदास समारोह, कुमार गंधर्व समारोह , भोपाल का लोकरंग समारोह, लोकरंगन खजुराहो, अलाउद्दीन खाँ समारोह मैहर, भगोरिया उत्सव झाबुआ और अंतराष्ट्रीय न्रत्य समारोह खजुराहो को मनाकर प्रदेश की ऐतिहासिक, सांस्क्रतिक धरोहरों को विश्व पटल तक पेहुचाने का अद्वितीय कार्य कर रही है। 2016 मे होने वाले सिंहस्थ को लेकर सरकार की सक्रियता देखने योग्य है, सिंहस्थ महाकुंभ के पूर्व शिवराज सरकार ने विचारो के महाकुंभ के तीन बड़े अंतर्राष्ट्रीय आयोजन मूल्य आधारित जीवन भोपाल मे, धर्म-धम्म सम्मेलन इंदौर और ग्लोबल वार्मिंग एवं जलवायु परिवर्तन पर अंतराष्ट्रीय सम्मेलन भोपाल मे आयोजित कर यह बता दिया है कि हिंदुस्तान का दिल जल्द ही वैश्विक स्तर के एक बड़े आयोजन सिंहस्थ का सफल आयोजक एवं साक्ष्य बनेगा l
               29 नवंबर 2005 को सत्ता सीन हुए शिवराज ने आज 29 नवंबर 2015 तक अपनी राजनीति मे भी ज़्यादातर समय ऊंचाइया ही प्राप्त की, विरोधियों को शालीनता और मर्यादित भाषा के साथ जबाब देने और सदन मे विपक्षी दलो को बोलने , उन्हे सुनने एवं महत्व देने की राजनीति शिवराज को आज के दौर के नेताओं से कहीं आगे की पंक्ति मे खड़ा कर देती है, सदन के बाहर भी उनके विपक्ष के कांग्रेसी साथी उनकी इस अदा के कायल रहते है और अनौपचारिक चर्चाओ मे अक्सर यही जिक्र करते रहते है कि शिवराज के मुख्यमंत्री रहते कांग्रेस को सत्ता पाना एक टेढ़ी खीर साबित होगा l अभी हाल ही मे झाबुआ चुनाव मे कांग्रेस् के विजय होने पर भी कांग्रेस् के नेता 2018 मे विधानसभा चुनाव मे जीत के लिए इतने आश्वस्त दिखाई नहीं दे रहे जितने की शिवराज सिंह चौहान !!!!               
                                                                            -सत्येंद्र खरे

                                                                                    

Saturday 28 November 2015

(मुख्यमंत्री शिवराज के 10 साल –भाग 1) शिवराज सिंह चौहान :- व्यक्तित्व, राजनीति और प्रसाशनिक नेत्रत्व

(मुख्यमंत्री शिवराज के 10 साल –भाग 1)
शिवराज सिंह चौहान :- व्यक्तित्व, राजनीति और प्रसाशनिक नेत्रत्व
          
            इस 29 नवंबर को शिवराज सिंह चौहान बतौर मुख्यमंत्री अपने 10 साल पूरे कर लेंगे, इन 10 सालो मे शिवराज सिंह चौहान ने मध्यप्रदेश को क्या कुछ दिया और अपनी राजनीति को तमाम विरोधो विवादो के बीच कैसे बचाए रखा ये एक लंबी चर्चा का विषय हो सकता है, परंतु आज से 10 साल पहले प्रदेश की राजनीति, और भाजपा मे चल रही उथल पुथल के बीच शिवराज का प्रदेश की राजनीति मे इतने बड़े स्तर पर पदार्पण करना भी किसी अचंभे से कम नहीं था, बहरहाल उस समय हुए इस अप्रत्याशित परिवर्तन से प्रदेश को आज तक कभी किसी बड़े नुकसान का सामना नहीं करना पड़ा बल्कि शिवराज के मुख्यमंत्री बनने के बाद पिछले एक दशक मे प्रदेश के इतिहास मे एक बड़ी सामाजिक क्रांति ही देखी गई और 10 साल मे मुख्यमंत्री रहते शिवराज के अथक प्रयासो से प्रदेश के ग्रामीण इलाको मे हुए सामाजिक परिवर्तन के लिए की गई तमाम घोषणाओ, योजनाओं एवं उनके सफल क्रियान्वयन के दम पर भाजपा और शिवराज लगातार तीसरी बार प्रदेश की सत्ता पाने मे सफल हुए
           शिवराज जब राजनीति मे आए उस दौरान देश मे इन्दिरा और कांग्रेस के विरुद्ध एक बड़ी लहर देखी जा रही थी, 1975 मे देश मे लगे आपातकाल के दौरान जेल जाने वाले शिवराज कदाचित सबसे कम उम्र के स्वयं सेवक रहे होंगे, 77-78 मे जब देश मे जनता पार्टी कि सरकार बनी तब शिवराज ने संघ कि सेवा करने का ही मन बनाया और धीरे धीरे राजनीति मे अपनी परिपक्वता साबित करने लगे, 1977 से लेकर 1983 तक शिवराज सिंह चौहान ने छात्र राजनीति के लिए अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद मे विभिन्न पदो को अपने नेत्रत्व क्षमता से सुशोभित किया और बाद मे भारतीय जनता युवा मोर्चा मे प्रदेश के सयुंक सचिव बन कर अपनी राजनेतिक यात्रा को नई दिशा दी, 1988 मे जब शिवराज पहली बार युवा मोर्चा के प्रदेश अध्यक्ष बने तब तत्कालीन कांग्रेस् सरकार के शासन और जुल्मो के विरोध मे एक मशाल जुलूस का आयोजन किया और उन्होने राजमाता सिंधिया से आग्रह कर इस जुलूस के नेत्रत्व करने की बात कही, तब प्रदेश मे भाजपा के तत्कालीन नेत्रत्व के सामने दो बड़ी चुनोतिया सामने आ गई कि क्या राजमाता सिंधिया, नाना जी देशमुख और कुशा भाऊ ठाकरे के कद और गरिमा केहिसाब से समर्थन जुट पाएगा ? ऐसे मे शिवराज ने ग्रामीण क्षेत्रो से 40000 किसानो के आने कि बात कहकर पूरे पार्टी नेत्रत्व को सहमा दिया , परंतु जब 7 अक्टूबर 1988 को भोपाल मे जुलूस निकला तब भोपाल आने वाली सारी सड़के ट्रैक्टर, ट्रक, जीप और बैलगाड़ियों से अटी पड़ी थी , संख्या 40000 से कही ज्यादा थी और दो दिन तक मशाल जुलुस मे आए ग्रामीणो का भोपाल से लौटना बदस्तूर जारी रहा , 7 अक्टूबर के दिन ही राजमाता सिंधिया ने शिवराज के सिर पर हाथ रख आशीर्वाद दिया और ऐलान किया कि यह लड़का राजनीति मे बेहूत आगे जाकर देश को नई दिशा प्रदान करेगा 
            शिवराज जब से राजनीति मे आए है उन्होने कभी अपनी ज़मीन छोड़ने की तनिक कोशिश भी नहीं की , वे हमेशा से अपने ठेठ अंदाज मे ही जनता के बीच जाते रहे और अपने भाषणो मे बुन्देली जुमलो का प्रयोग कर समाज के पिछड़े वर्गो के बीच लोकप्रियता हासिल करते रहे है, आज के आधुनिक युग मे जब सब कुछ हाइटेक हो रहा है ऐसे मे शिवराज ने अपने आप को कभी ऐसे प्रतीत नहीं होने दिया कि वो इस ह्रदय प्रदेश के मुखिया है, उनकी जनता के बीच शुरू मे बनी “पाव पाव वाले भैया” जैसी छवि आज भी बरकरार है जो कि उन्हे देश के अन्य मुख्यमंत्रियों से अलग करती है
          शिवराज आज ही नहीं बल्कि अपने राजनैतिक काल के प्रारम्भ से ही एक ऐसे  संवेदनशील व्यक्ति के रूप मे पहचाने जाने लगे थे जिसके मन मे गरीब, किसान, बुजुर्ग, महिलाओं और बच्चो कि बेहतरी करने के लिए हमेशा पीड़ा रही है , शिवराज सिंह चौहान जब 1991 मे बुधनी से विधायक और 1992 मे विदिशा से सांसद बने तब उन्होने हजारो कि संख्या मे सामूहिक विवाह कराये और कई कन्याओं का कन्यादान लेकर यह संदेश दिया कि कन्या धरती पर भोज नहीं है, और बाद मे जब वे मुख्यमंत्री बने तब उन्होने “कन्यादान योजना” बनाकर माताओं के भाई और बेटियों के मामा बनकर स्वयं कि छवि एक “मामा मुख्यमंत्री” के रूप मे स्थापित कर ली जो आज तक बदस्तूर जारी है, बतौर मुख्यमंत्री रहते उनके काल मे भ्रूण हत्या को रोकने के लिए जो काम शिवराज कि महत्वाकांछी “लाड़ली लक्ष्मी योजना” और “बेटी बचाओ अभियान ”ने किए वो अब तक देश का कोई बड़ा कानून भी संभव नहीं कर पाया है, आज प्रदेश मे 2001 कि मे प्रति हज़ार 919 महिलाओं कि संख्या बढ़कर 2011 मे 931 महिला प्रति हज़ार हो गई है
           गावों मे सामाजिक क्रांति लाने के लिए शिवराज सिंह चौहान के कुछ प्रयास और प्रसाशनिक नेत्रत्व अत्यंत सरहनीय रहे जो अनेक राज्यो एवं केंद्र के लिए अनुकरणीय बने,, गाव कि बेटी योजना, जननी सुरक्षा एव जननी प्रसव योजना, स्वागतम लक्ष्मी योजना, उषा किरण योजना, तेजस्विनी,वन स्टॉप क्राइसेस सेंटर , लाडो अभियान, महिला सशक्तिकरण योजना,  कन्यादान एवं निकाह योजना, शोर्य दल का गठन, छात्राओं के लिए मुफ्त पाठ्य पुस्तके, साइकिल, विभिन्न छात्रव्रतियाँ और नगरीय निकाय मे 50 प्रतिशत महिला आरक्षण कर महिला सशक्तिकरण कि दिशा मे देश भर मे सर्वाधिक कार्य होने के अद्वितीय उदाहरण बने, महिलाओं कि बेहतरी कि दिशा मे उठाए गए इन कदमो का श्रेय शिवराज को ही जाता है और इसी का परिणाम यह रहा कि 2013 मे हुए विधानसभा चुनाव मे महिलाओं ने शिवराज सिंह चौहान को जिताने मे कोई कोर कसर बाकी नहीं रखी
            आज शिवराज प्रदेश के ऐसे मुख्यमंत्री के रूप मे पहचान बना चुके है जो प्रदेश के मुखिया भले हो परंतु ज़मीन पर जाकर काम करने से कभी परहेज नहीं करते ,एक सेवक के रूप मे वे गावों मे , खेतो मे , पंचायतों मे जाकर ये परखने का काम आज भी कर रहे है और अपनी ज़मीन की परख के बल पर ऐसी योजनाए बनाने मे सक्षम हुए है जिससे गावों का विकास तो संभव हो ही साथ ही उनकी राजनीति भी गाव, जंगल, जमीन , किसान और महिला कल्याण के रूप मे जानी जाती रहे l  
-    सत्येंद्र खरे


Monday 9 November 2015

बिहार चुनाव परिणाम का मध्यप्रदेश की राजनीति पर क्या प्रभाव पड़ेगा ?

बिहार चुनाव परिणाम का मध्यप्रदेश की राजनीति पर क्या प्रभाव पड़ेगा ?
2014 में लोकसभा चुनाव के बाद राजनैतिक हल्कों में यही माना जाता रहा कि बिहार ही पहला राज्य बनेगा जहाँ के चुनाव परिणाम यह तय करेंगे कि देश की राजनीति की नई दिशा क्या होगी ? और भाजपा के मोदी, शाह की जुगल जोड़ी का भविष्य क्या होगा ? दिल्ली और अब बिहार चुनाव परिणामो ने यह बता दिया है कि भाजपा संघठन को अपनी रणनीति पर विचार करने की जरुरत है, प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने पिछले 1.5 वर्षो में देश के विकास में जो उपब्धियाँ हासिल की वो काबिले तारीफ है परन्तु देश के आंतरिक मामलो में जो एक अविश्वास बढ़ा है उस पर भी अब ज्यादा ध्यान देने की जरुरत बढ़ गई है क्यूंकि मीडिया में लगातार अ रही असहिष्णुता की खबरों पर प्रधानमंत्री मोदी को बोलने की जरुरत भी आन पड़ी है तो वही संघठन को भी चाहिए कि ऐसे नेताओ पर नकेल कसे जो गाहे बगाहे जबरन की फिजूल बयानबाजी कर सुर्खियाँ बटोर रहे है,और भाजपा की नीव कमजोर करने का काम करने का काम कर रहे है , प्रधानमंत्री के ही शब्दों में बात करे तो “सबका साथ-सबका विकास” में हमे सबके साथ की ही जरुरत पड़ेगी, किसी एक को साथ लेकर चलने की बात पर देश में अब विकास संभव नही है
यहाँ बात मध्यप्रदेश के सन्दर्भ में हो रही है तो यह भी जान लेना जरुरी है कि प्रदेश में भी पिछले लगभग 12 वर्षो से भाजपा की सरकार है और 10 वर्षो से मुख्यमंत्री शिवराज, सरकार का सफलतम क्रियान्वयन कर रहे है , यहाँ यह भी कहना गलत नही होगा की अटल बिहारी बाजपेइ के बाद शिवराज ही भाजपा के एक मात्र ऐसे नेता है जिन पर मुस्लिमो का विस्वाश हमेशा कायम रहा है, शिवराज ने अपनी संवेदनशीलता के चलते हर वर्ग का विश्वाश कायम कर विकास की द्रष्टि से सफल कदम उठाये है, हालाँकि केंद्र में नरेन्द्र मोदी की सरकार बनने के बाद जिस प्रकार अमित शाह और मोदी ने मिलकर भाजपा संघठन के वरिष्ठ नेताओं को एक एक कर किनारे लगाना शुरू किया तो उसी दिन से यह भी माना जाने लगा कि शिवराज, वसुंधरा और रमन सिंह के भी दिन जल्दी पूरे होंगे, मीडिया भी समय समय पर यह खबरे दे रहा था की बिहार चुनाव में मोदी शाह सफलता हासिल करते है तो इन तीनो को केंद्र में बुलाकर अपने गुट के नेताओं को यहाँ आसीन कराएँगे, यह भी ध्यान देने योग्य बात है कि मोदी जब मुख्यमंत्री थे तो शिवराज भाजपा में ऐसे दुसरे नेता रहे जिन्हें हमेशा से राज्य की जनता से प्यार और आशीर्वाद मिलता रहा, शिवराज की जनकल्याणकारी नीतियों की वजह से ही भाजपा की पहुच मध्यप्रदेश में गाँव तक बढ़ी, वहीँ भाजपा संघठन के केंद्र में तत्कालीन नेता रहे आडवानी ने भी खुले तौर पर यह कहना शुरू कर दिया था कि एन डी ए में मोदी के नाम पर सहमति नहीं बनती है तो शिवराज प्रधानमंत्री पद के लिए दुसरे विकल्प होंगे, मोदी के नाम पर ही नितीश ने असहमति जताकर एन डी ए से जे डी यू को अलग किया था
आज जब बिहार के चुनाव में नितीश और लालू की सरकार बनना तय हो गया है तो इसके उलट मध्यप्रदेश के राजनैतिक हल्कों , और मीडिया में कुछ दिन पहले ये खबरे चल रही थी कि भाजपा का केंद्रीय नेतृत्व जल्द ही शिवराज को केंद्रीय मंत्रिमंडल में कृषि मंत्रालय की जिम्मेदारी सौपेगा लेकिन बिहार के जैसे नतीजे आये है तो अभी इन खबरों पर विराम स्वतः ही लग जायेगा, हालाँकि जब से मोदी सरकार केंद्र में सत्तासीन हुई है तब से मध्यप्रदेश को न तो कोई विशेष लाभ हुआ है और न ही राज्य को केंद्र से मिलने वाली आर्थिक मदद पूरी तरह से नसीब हुई है, आज जब प्रदेश में सूखे के भयावह हालात बने हुए है ऐसे में शिवराज और शिवराज के मंत्री मोदी सरकार के सामने लगातार आर्थिक मदद के लिए नार्थ ब्लाक के चक्कर पे चक्कर काट रहे है तो वही नरेन्द्र मोदी मध्यप्रदेश के किसानो की सुध लेने की बजाय बिहार में 1 लाख 65 हज़ार करोड़ , तो जम्मू कश्मीर में 80 हज़ार करोड़ देने की बात कर रहे है परन्तु मध्यप्रदेश को देने के लिए 2500 करोड़ रूपए भी नही है जो की प्रदेश के कई समय से लंबित पड़े हुए है, ऐसे में आज नही तो कल हालात भाजपा विरोधी बन जायेंगे, शिवराज तो फिर भी इन हालात से भाजपा को निकालने के लिए पुरजोर कोशिश कर रह है , किसान को राहत देने के लिए विधानसभा का विशेष सत्र बुलाकर अनुपूरक बजट को स्वीकृत किया जा रहा है तो प्रदेश में निवेश के लिए कहीं अरब तो कहीं जापान कोरिया के दौरे कर रहे है , माहौल जो भी हो मोदी को भी चाहिए कि जिस विकास की वो बात कर रहे है वो राज्यों से ही होकर जाता है , आज राज्य सभा में भाजपा का बहुमत नही है और ऐसे में मोदी सरकार को भी चाहिए कि विदेश नीति से इतर राज्यों की सुध लेना शुरू करे और चुनाव में सफल होकर राज्यसभा से उन बिलों को पारित करा सके जिससे मोदी के विकसित भारत के सपने को साकार किया जा सके , साथ ही भाजपा केंद्रीय संघठन और नागपुर में संघ भी अब इस बात पर गौर करें कि जिन राज्यों में भाजपा की सरकार है वहां विकास की परियोजनाओं पर विशेष ध्यान दिया जाये जिससे इन राज्यों के कार्यकर्ताओं और जनता में भाजपा के प्रति विस्वास बना रहे
बहरहाल आज के परिणामो से हम इस निष्कर्ष पर तो पहुच ही सकते है कि भाजपा संघठन शीघ्र ही एक चिंतन बैठक कर पार्टी की नीतियों पर विचार करेगा और मोदी शाह की जुगल जोड़ी से आगे निकलकर अन्य संभावनाओं पर भी गौर करेगा जिससे आने वाले समय में भाजपा शाषित राज्यों में विकास की उन संभावनाओं की परिकल्पनाओं को साकार किया जा सकेगा जिन्हें मोदी ने अपने 2014 के लोकसभा के चुनावो के भाषणों में समाहित कर चुनाव में जीत हासिल की थी, अब रही बात मध्यप्रदेश की तो बिहार चुनाव के परिणाम आने के बाद शिवराज की कुर्सी को हाल फ़िलहाल अब कोई खतरा दिखाई नही दे रहा लेकिन शिवराज को भी चाहिए कि अब खेती को लाभ का धंधा बनाने के साथ राज्य में औद्योगिक द्रष्टि से विकास संभव हो सके इसके लिए प्रयासों में तेज़ी लानी होगी और यहाँ के युवाओं को रोजगार नसीब हो जिससे आने वाले 2018 के विधानसभा चुनाव में जनता जनार्दन एक बार फिर से भाजपा और शिवराज के प्रति अपना प्यार और आशीर्वाद जता सके

Sunday 8 November 2015

बिहार चुनाव परिणाम का मध्यप्रदेश की राजनीति पर क्या प्रभाव पड़ेगा ?

बिहार चुनाव परिणाम का मध्यप्रदेश पर क्या प्रभाव पड़ेगा ?

          2014 में लोकसभा चुनाव के बाद राजनेतिक हलको में यही माना जाता रहा  की बिहार ही पहला राज्य बनेगा  जहाँ के चुनाव परिणाम यह तय करेंगे की देश की राजनीती की नई दिशा क्या होगी ? और भाजपा के मोदी, शाह की जुगल जोड़ी का भविष्य क्या होगा, दिल्ली और अब बिहार चुनाव परिणामो ने यह बता दिया है कि भाजपा संघठन को अपनी रणनीति पर विचार करने की जरुरत है, प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने पिछले 1.5 वर्षो में देश के विकास में जो उपब्धियाँ हासिल की वो काबिले तारीफ है परन्तु देश के आंतरिक मामलो में जो एक अविश्वास बढ़ा है उस पर भी अब ज्यादा ध्यान देने की जरुरत बढ़ गई है क्यूंकि  मीडिया में लगातार अ रही असहिष्णुता की खबरों पर प्रधानमंत्री मोदी को बोलने की जरुरत आन पड़ी है तो वही संघठन को भी चाहिए कि ऐसे नेताओ पर नकेल कसे जो गाहे बगाहे जबरन की फिजूल बयानबाजी कर सुर्खियाँ बटोर रहे है,और भाजपा की नीव कमजोर करने का काम करने का काम कर रहे है , प्रधानमंत्री के ही शब्दों में बात करे तो सबका साथ-सबका विकास में हमे सबके साथ की ही जरुरत पड़ेगी, किसी एक को साथ लेकर चलने की बात पर देश में अब विकास संभव नही है
          यहाँ बात मध्यप्रदेश के सन्दर्भ में हो रही है तो यह भी जान लेना जरुरी है कि प्रदेश में भी पिछले लगभग 12 वर्षो से भाजपा की सरकार है और 10 वर्षो से मुख्यमंत्री शिवराज सरकार का सफलतम क्रियान्वयन कर रहे है , यह भी कहना गलत नही होगा की अटल बिहारी बाजपाई के बाद शिवराज ही भाजपा के एक मात्र ऐसे नेता है जिन पर मुस्लिमो का विस्वास हमेशा कायम रहा है, शिवराज ने अपनी संवेदनशीलता के चलते हर वर्ग का विश्वास कायम कर विकास की द्रष्टि से सफल कदम उठाये है, हालाँकि केंद्र में नरेन्द्र मोदी की सरकार बनने के बाद जिस प्रकार अमित शाह और मोदी ने मिलकर भाजपा संघठन के वरिष्ठ नेताओं को एक एक कर किनारे लगाना शुरू किया उसी दिन से यह भी माना जाने लगा कि शिवराज, वसुंधरा और रमन सिंह के भी दिन जल्दी पूरे होंगे, मीडिया भी समय समय पर यह खबरे दे रहा था की बिहार चुनाव में मोदी शाह सफलता हासिल करते है तो इन तीनो को केंद्र में बुलाकर अपने गुट के नेताओं को यहाँ आसीन कराएँगे, यह भी ध्यान देने योग्य बात है कि मोदी जब मुख्यमंत्री थे तो शिवराज भाजपा में ऐसे दुसरे नेता रहे जिन्हें हमेशा से राज्य की जनता से प्यार और आशीर्वाद मिलता रहा,  शिवराज की जनकल्याणकारी नीतियों की वजह से ही भाजपा की पहुच यहाँ गाँव तक बढ़ी, वहीँ भाजपा संघठन के केंद्र में तत्कालीन नेता रहे आडवानी ने भी खुले तौर पर यह कहना शुरू कर दिया था कि एन डी ए में मोदी के नाम पर सहमति नहीं बनती है तो शिवराज प्रधानमंत्री पद के लिए दुसरे विकल्प होंगे, मोदी के नाम पर ही नितीश ने असहमति जताकर एन डी ए से जे डी यू को अलग किया था
          आज जब बिहार के चुनाव में नितीश और लालू की सरकार बनना तय हो गया है तो इसके उलट मध्यप्रदेश के राजनैतिक हल्कों , और मीडिया में कुछ दिन पहले ये खबरे चल रही थी कि भाजपा का केंद्रीय  नेतृत्व जल्द ही शिवराज को केंद्रीय मंत्रिमंडल में कृषि मंत्रालय की जिम्मेदारी सौपेगा लेकिन बिहार के जैसे नतीजे आये है तो अभी इन खबरों पर विराम स्वतः ही लग जायेगा, हालाँकि जब से मोदी सरकार केंद्र में सत्तासीन हुई है तब से मध्यप्रदेश को न तो कोई विशेष लाभ हुआ है और न ही राज्य को केंद्र से मिलने वाली आर्थिक मदद पूरी तरह से नसीब हुई है, आज जब प्रदेश में सूखे के भयावह हालात बने हुए है ऐसे में शिवराज और शिवराज के मंत्री मोदी सरकार के सामने लगातार आर्थिक मदद के लिए नार्थ ब्लाक के चक्कर पे चक्कर काट रहे है तो वही नरेन्द्र मोदी मध्यप्रदेश के किसानो की सुध लेने की बजाय बिहार में 1 लाख 65 हज़ार करोड़ , तो जम्मू कश्मीर में 80 हज़ार करोड़ देने की बात कर रहे है परन्तु मध्यप्रदेश को देने के लिए 2500 करोड़ रूपए भी नही है जो की प्रदेश के कई समय से लंबित पड़े हुए है, ऐसे में आज नही तो कल हालात भाजपा विरोधी बन जायेंगे, शिवराज तो फिर भी इन हालात से भाजपा को निकलने के लिए लगे हुए है, किसान को राहत देने के लिए विधानसभा का विशेष सत्र बुलाकर अनुपूरक बजट को स्वीकृत किया जा रहा है तो प्रदेश में निवेश के लिए कहीं अरब तो कहीं जापान कोरिया के दौरे कर रहे है , माहौल जो भी हो मोदी को भी चाहिए कि जिस विकास की वो बात कर रहे है वो राज्यों से हकर ही जाता है , आज राज्य सभा में भाजपा का बहुमत नही है और ऐसे में मोदी सरकार को भी चाहिए कि विदेश नीति से इतर राज्यों की सुध लेना शुरू करे तो चुनाव में सफल होकर राज्यसभा से उन बिलों को पारित करा सके जो मोदी के विकसित भारत के सपने को साकार कर सके, और साथ में भाजपा केंद्रीय संघठन और नागपुर में संघ भी अब इस बात पर गौर करेंगे कि जिन राज्यों में भाजपा की सरकार है वहां विकास की परियोजनाओं पर विशेष ध्यान दिया जाये जिससे इन राज्यों के कार्यकर्ताओं और जनता में भाजपा के प्रति विस्वास बना रहे
      बहरहाल आज के परिणामो से हम इस निष्कर्ष पर तो पहुच ही सकते है कि भाजपा संघठन शीघ्र ही एक चिंतन बैठक कर पार्टी की नीतियों पर विचार करेगा और मोदी शाह की जुगल जोड़ी से आगे निकलकर अन्य संभावनाओं पर भी गौर करेगा जिससे आने वाले समय में भाजपा साशित राज्यों में विकास की उन संभावनाओं की परिकल्पनाओं को साकार किया जा सकेगा जिन्हें मोदी ने अपने 2014  के लोकसभा के चुनावो के भाषणों में समाहित कर चुनाव में जीत हासिल की थी, अब रही बात मध्यप्रदेश की तो बिहार चुनाव के परिणाम आने के बाद शिवराज की कुर्सी को हाल फ़िलहाल अब कोई खतरा दिखाई नही दे रहा  लेकिन शिवराज को भी चाहिए कि अब खेती को लाभ का धंधा बनाने के साथ राज्य में औद्योगिक द्रष्टि से विकास संभव हो सके और यहाँ के युवाओं को रोजगार नसीब हो जिससे आने वाले 2018 के विधानसभा चुनाव में तभी जनता जनार्दन का भाजपा के प्रति प्यार और आशीर्वाद संभव हो सकेगा
-         सत्येन्द्र खरे (स्वतंत्र पत्रकार )