Sunday 29 November 2015

(मुख्यमंत्री शिवराज के 10 साल –भाग 2) शिवराज सिंह चौहान :- व्यक्तित्व, राजनीति और प्रसाशनिक नेत्रत्व

(मुख्यमंत्री शिवराज के 10 साल –भाग 2)
शिवराज सिंह चौहान :- व्यक्तित्व, राजनीति और प्रसाशनिक नेत्रत्व
            मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने अपनी संवेदनशीलता के बल और विकास के कर्तव्य पथ  पर चलकर 10 वर्ष पूरे कर लिए है, और इस कालखंड के दौरान देखने लायक जो मुख्य रही वो यह कि मध्यप्रदेश के इतिहास मे किसानो के सर्वाधिक कल्याण के कार्यक्रम शिवराज सरकार ने ही चलाये, खेती को लाभ का धंधा बनाने के इस जुनून ने शिवराज को किसानो का मसीहा तक बना दिया, शिवराज स्वयं एक किसान पुत्र है इसलिए वे भली भांति जानते थे कि किसानो कि समस्याए क्या है ? और उन समस्याओं के हल निकाल दिये जाए तो प्रदेश के अन्नदाता क्रषी विकास मे प्रदेश को नई उचाइयाँ प्रदान कर सकते है, शिवराज ने पिछले 10 वर्षो मे इस ओर बहतरीन काम करके भी दिखाया जिसका परिणाम हमे प्रदेश कि क्रषी विकास दर 24.99 प्रतिशत तक पेहुचकर न केवल देश मे अपितु विश्व मे सर्वाधिक दर्ज कि गई, शिवराज के क्रषी विकास की दिशा मे किए गए अनेकों अनेक योजनाओं का सार्थक परिणाम यह रहा कि किसानो कि आर्थिक स्थिति पहले कि अपेक्षा मजबूत हुई और साथ ही प्रदेश को भी पिछले तीन वर्षो से लगातार केंद्र सरकार के द्वारा “क्रषी कर्मण पुरुष्कार” से सुशोभित किया जा रहा है l शिवराज सिंह किसानो और मजदूरो से संवाद करते हुए अक्सर एक जुमले का जिक्र करते है कि “राम कि चिराइया राम के खेत, खाओ री चिरइयों भर भर पेट” , और उन्होने इस जुमले को जमीन पर सार्थक करने का काम भी किया है
            शिवराज ने हमेशा मजदूर और किसानो के हित के लिए अपनी राजनीति को सर्वोपरी रखा, बचपन मे ही किसान और मजदूरो के हितो कि रक्षा करने के गुण बाल शिवराज मे दिखाई देने लग गए थे, ऐसे ही एक घटना का जिक्र आज भी स्वयं शिवराज सिंह चौहान बड़े रोमांचकारी, हंसी,ठिठोली के साथ अनौपचारिक चर्चाओं मे करते दिखाई देते है, वो ठेठ भाषा बोली के साथ बताते है कि जब वे 13  साल कि उम्र से रहे तब गाव मे मजदूरन को खेत मे काम करवे के लाने ढाई पाई रोजाना मिलत रही और मजदूरन को इतने कम पईसा मे गुजारा नहीं हो पात रहो तब मैंने खुदई आगे बढ़ के मज़दूरन को इकट्ठों करो और कई कि ढाई कि जगह पाँच पाई मांगो और नारा लगवाओ कि “पाच पाई नहीं तो काम नहीं” !!!! मज़दूरन ने भी हमसे कही कि मान लो हमाइ बात न मानी गई तो ???? तब मैंने कही कि थोड़े दिना कर्रे तो हो लो .... बस फिर का हतो शाम मे पेट्रोमैक्स जलाए , कंधे मे धरे और गाव के चक्कर के साथ मज़दूरन ने नारा लगावों शुरू कर द्ये “हमाओ नेता कैसा हो, शिवराज जैसा हो ” और “पाँच पाई नहीं तो काम नहीं” !!!! अब गाव के चक्कर लगाई रहे थे कि अपने घर के सामने जा पहुचे, हम भी आगे आगे और मजदूर पीछे पीछे , इतने मे हमाए घर के दरवाजा खुले और चाचा बड़ी सी सटइया लेकर बाहर, मोहे समझ मे आ गई कि शिवराज अब तेरी खेर नहीं, और इतने मे पीछे खड़े मजदूर जो कछु देर पहले नारा लागा रहे थे – वे सब नदारद , चाचा अंदर ले गए, पिटाई जो भई सो भई , सज़ा के तौर पे घर पे कटी रखी फसल को दामन करवाया सो अलग, खैर इस घटना का परिणाम ये रहा कि कुछ दिन बाद मजदूरो कि इस समस्या पर गाव वालो ने गौर किया और हमारा पहला आंदोलन सफल रहा l
             13 वर्ष के जिस शिवराज ने अपने नेत्रत्व मे गाव के मजदूरो को संघठित कर सफल आंदोलन किया अब वही शिवराज सफल प्रसाशनिक नेत्रत्व कर किसानो मजदूरो के लिए योजनाए बनाकर उनका सफल क्रियान्वयन कर रहे है, वर्तमान परिवेश मे देखने लायक एक बात और भी है कि  आज प्रदेश मे एक बड़ा इलाका सूखा ग्रषित है, अगर शिवराज सरकार ने पिछले 10 वर्षो के दौरान सिचाई का रकबा साढ़े सात लाख हेक्टेयर से बढ़ाकर 27 लाख हेक्टेयर तक नहीं पहुचया होता तो हालत और भी भयावह होते, नर्मदा क्षिप्रा के साथ अब पार्वती , और काली सिंध को भी नर्मदा से जोड़ने कि दिशा मे तेजी से प्रयास किए जा रहे है, वही बुंदेलखंड के पन्ना छतरपुर और टीकमगढ़ जिलो मे सिचाई हेतु केन बेतवा लिंक परियोजना को कैसे धरातल पर लाया जाए इसके लिए शिवराज के प्रयास जारी है, आज जब किसान ओला पाला, सूखा और अति व्रष्टि से व्यथित है ऐसे मे शिवराज अपने ह्रदय कि समवेदनाओं के साथ प्रदेश के किसानो का मनोबल ऊंचा करने के लिए बार बार यही कह रहे है कि “साल हारे है,ज़िंदगी नहीं हारने दूँगा” और इस वाक्य को चरितार्थ करने हेतु किसानो की  कर्ज माफी, अस्थायी बिजली कनैक्शन,फसल बीमा की राशि का त्वरित वितरण, फसलों पर निर्भरता कम हो इसके लिए आय के अन्य साधनो एवं श्रोतों पर काम करने के लिए आदेश एवं विधानसभा का विशेष सत्र बुलाकर किसानो के कल्याण हेतु अनुपूरक बजट पास करा रहे है
              शिवराज के संवेदनशीलता और कार्यशैली की बानगी क्रषी विकास तक ही सीमित नहीं रही उन्होने अपने प्रसाशनिक नेत्रत्व के बल पर देश के दिल को पर्यटन की द्रष्टि से भी विकसित करने के लिए अभूतपूर्व काम किए है, आज पूर्व की तुलना मे मध्यप्रदेश आने वाले पर्यटको की संख्या बढ़ी है जिसके फलस्वरूप हमारे पर्यटन क्षेत्रो मे रहने वाले युवको को रोजगार भी मिला है, विश्व धरोहर सांची, भीमबैठका और खजुराहो के विकास के साथ छोटे छोटे पर्यटन स्थल जैसे मांडू, चँदेरी, चित्रकूट, पन्ना, महेश्वर और ओंकारेश्वर इत्यादि को प्रदेश के पर्यटन नक्शे मे लाकर इस और ध्यान दिया जा रहा है, टाइगर स्टेट कहे जाने वाले इस प्रदेश मे शिवराज सरकार तानसेन समारोह, महेश्वर महोत्सव, कालीदास समारोह, कुमार गंधर्व समारोह , भोपाल का लोकरंग समारोह, लोकरंगन खजुराहो, अलाउद्दीन खाँ समारोह मैहर, भगोरिया उत्सव झाबुआ और अंतराष्ट्रीय न्रत्य समारोह खजुराहो को मनाकर प्रदेश की ऐतिहासिक, सांस्क्रतिक धरोहरों को विश्व पटल तक पेहुचाने का अद्वितीय कार्य कर रही है। 2016 मे होने वाले सिंहस्थ को लेकर सरकार की सक्रियता देखने योग्य है, सिंहस्थ महाकुंभ के पूर्व शिवराज सरकार ने विचारो के महाकुंभ के तीन बड़े अंतर्राष्ट्रीय आयोजन मूल्य आधारित जीवन भोपाल मे, धर्म-धम्म सम्मेलन इंदौर और ग्लोबल वार्मिंग एवं जलवायु परिवर्तन पर अंतराष्ट्रीय सम्मेलन भोपाल मे आयोजित कर यह बता दिया है कि हिंदुस्तान का दिल जल्द ही वैश्विक स्तर के एक बड़े आयोजन सिंहस्थ का सफल आयोजक एवं साक्ष्य बनेगा l
               29 नवंबर 2005 को सत्ता सीन हुए शिवराज ने आज 29 नवंबर 2015 तक अपनी राजनीति मे भी ज़्यादातर समय ऊंचाइया ही प्राप्त की, विरोधियों को शालीनता और मर्यादित भाषा के साथ जबाब देने और सदन मे विपक्षी दलो को बोलने , उन्हे सुनने एवं महत्व देने की राजनीति शिवराज को आज के दौर के नेताओं से कहीं आगे की पंक्ति मे खड़ा कर देती है, सदन के बाहर भी उनके विपक्ष के कांग्रेसी साथी उनकी इस अदा के कायल रहते है और अनौपचारिक चर्चाओ मे अक्सर यही जिक्र करते रहते है कि शिवराज के मुख्यमंत्री रहते कांग्रेस को सत्ता पाना एक टेढ़ी खीर साबित होगा l अभी हाल ही मे झाबुआ चुनाव मे कांग्रेस् के विजय होने पर भी कांग्रेस् के नेता 2018 मे विधानसभा चुनाव मे जीत के लिए इतने आश्वस्त दिखाई नहीं दे रहे जितने की शिवराज सिंह चौहान !!!!               
                                                                            -सत्येंद्र खरे

                                                                                    

No comments:

Post a Comment