मध्यप्रदेष का स्थापना दिवस.......
मां की गोद, पिता का आश्रय मेरा मध्यप्रदेष है
मां की गोद पिता का आश्रय कहने का आषय यह है कि किसी बालक के विकास में एक मां जिस तरह बच्चे को अच्छे संस्कार देकर उसे भविष्य के लिए तैयार करती है उसी प्रकार एक पिता अपने बालक की नादानियों-गलतियों को सुधारकर उसे एक अच्छा नागरिक बनानें के लिए हमेषा तत्पर रहता है। वैसा ही आज के मध्यप्रदेष को बनानें में यहां की जनता और सरकारों ने अपने योगदान को बखूबी निभाया है। जिसके फलस्वरूप आज विकासषील मध्यप्रदेष हमारे समक्ष है। आज के विकासषील मध्यप्रदेष ने पं. रविषंकर शुक्ल से षिवराज सिंह चैहान तक एक लंबा कालखंड देखा है। स्वभाविक है कि इतने लंबे समय में कई बदलाव हुए होंगे। सामाजिक एवं आर्थिक दृष्टि से राज्य ने विकास के कई आयामों का स्पर्ष भी किया होगा। लेकिन हृदय राज्य जनता जनार्दन के हृदय में कितनी जगह बना पाया है यह सवाल करना अभी जल्दबाजी होगा। प्रदेष के इतिहास में नजर डालें तो राज्य में ज्यादातर समय कांग्रेस की सरकारें रहीं हैं और साथ में इसी दौरान केन्द्र में कांग्रेस की केंद्र सरकार ने शासन किया है। केंद्र और राज्य में एक पार्टी की सरकार की दृष्टि से विकास को देखा व परखा जाये तो यह दुर्भाग्य ही रहा है कि मध्यप्रदेष कभी भी विकसित राज्यों की श्रेणी में नही आ सका। 1956 से ही प्रदेष के विकास को लेकर केन्द्र और राज्य सरकारों ने जो विकास की योजनाएं बनाई वे भलींभांति जमीन पर प्रदेष के 6 दषकों में सफल होने में पूरी तरह नाकामयाब रही। इसका दुश्परिणाम यह हुआ कि देष का तत्कालीन सबसे बड़ा राज्य नाममात्र के लिए बड़ा बनकर रह गया।
सन् 2000 के पूर्व अविघटित मध्यप्रदेष में संसाधनों के अथाह भण्डार थे, तब कांग्रेस ने राज्य के विकास की चिंता नहीं की, अपितु मध्यप्रदेष विघटन के साथ कांग्रेस की दिग्गी सरकार जो विघटन के लिए पूरी तरह जिम्मेदार थी उसने राजनैतिक माहौल तैयार कर प्रदेष की जनता से झूठी बयानबाजी की थी कि कांगे्रस कम संसाधनों के साथ भी पूरी तरह विकास करनें में सक्षम है। मध्यप्रदेष विघटन के समय दिग्गी-जोगी के बीच हुई सत्ता स्थानांतरण की छिछालेदर को जनता ने 2003 के विधानसभा चुनावों में कांग्रेस की विदाई के साथ समाप्त किया। 2000 में तीन नये राज्यों का गठन किया गया, उत्तरांचल, छत्तीसगढ़ और झारखण्ड। तीनों नये राज्यों में अपने मूल राज्य से ज्यादा विकास की क्षमताएं थी, लेकिन मूल राज्यों मध्यप्रदेष, उत्तरप्रदेष और बिहार के विकास की बात करें तो मध्यप्रदेष ने ही विकास को संभव बनाया है और इसका श्रेय 2003 में गठित हुई भारतीय जनता पार्टी की प्रदेष सरकार को दिया जाये तो यह अनुचित नहीं होगा।
मध्यप्रदेष राज्य 2003 के मध्यप्रदेष की तुलना में काफी आगे आ चुका है। बिजली, सड़क जैसी मूलभूत सुविधाओं के साथ प्रषासनिक अक्षमताओं से जूझ रहे प्रदेष को बाहर निकालने में षिवराज सरकार का महत्वपूर्ण योगदान है, 2003 से अब तक प्रदेष में भाजपा की सरकार है और केन्द्र में 2004 से मई 2014 तक यूपीए की सरकार रही है। ऐसी विषम परिस्थितियों में प्रदेष ने -4 प्रतिषत से लेकर 11.08 प्रतिषत आर्थिक विकास दर का सफर तय किया है, जो कि इस समय देष में सर्वाधिक है। ऐसा नहीं है कि मात्र आंकड़ों के आधार पर हम राज्य को विकसित राज्य घोषित कर दे। आज भी कई क्षेत्रों में विकास की आवष्यकताएं जस-की-तस बनी हुई है। रोजगार, उद्योग, जैसे कई क्षेत्र ऐसे हैं जिनमें अब क्रांतिकारी बदलाव की जरूरत आन पड़ी है। खेती में भले प्रदेष 24.99 प्रतिषत की विकास दर हासिल कर नंबर 1 राज्य बन गया हो, परंतु कुपोषण जैसी समस्याओं से लड़ने के लिए षिवराज सरकार को भागीरथी प्रयास की जरूरत होगी। उद्योगों के परिप्रेक्ष्य में प्रदेष के पास कोई बड़ी उपलब्धि तो नहीं है, परन्तु प्रदेष सरकार निवेष के माध्यम से इस क्षेत्र में विकास करने के लिए प्रतिबद्ध दिखाई दे रही है। इंदौर, ग्वालियर जैसे महानगरों में बंद पड़ी कपड़ा मिलों को दोबारा शुरू करने पर ध्यान देने की आवष्यकता है, जिससे इन क्षेत्रों में रोजगार की समस्या को दूर किया जा सके। आधुनिक समय में प्रदेष को आईटी हब बनाना षिवराज सरकार की एक नेक शुरूआत है। मेक इन एमपी जैसे कार्यक्रम प्रारंभ कर सरकार मेक इन इंडिया की सफलता में अपना योगदान एक जिम्मेदार एवं जबावदेह राज्य के रूप में दे सकती है। प्रदेष के औद्योगिक विकास की बात की जाये तो यहां एक बात बताना बेहद जरूरी है कि एषिया की एकमात्र हीरा खनन परियोजना प्रदेष के पन्ना जिले में है, और वह अपनी बदहाली के दिनों को बखूबी महसूस कर रही है। हीरा खनन परियोजना को दोबारा सुचारू रूप से प्रारंभ करने के लिए षिवराज सरकार को केंद्र के समक्ष अपनी तत्परता के साथ प्रभावकारी एवं परिणामकारी भूमिका को जल्द से जल्द से सुनिष्चित करना चाहिए। क्योंकि ऐसी परियोजनाएं बंद होने पर बेरोजगार व्यक्तियों का एक बड़ा वर्ग इस क्षेत्र में पैदा हो जायेगा। हीरे जैसी अमूल्य धरोहर रखने वाला यह क्षेत्र विकास के लिए आज भी तरस रहा है। हाल ही में संपन्न हुई इंदौर इन्वेस्टर्स समिट से सरकार ने राज्य में 6 लाख करोड़ रू. के निवेष का दावा पेष किया है। इस अच्छे प्रयास में हमें यह बात नहीं भूलना चाहिए कि जिन क्षेत्रों में विकास की दरकार अब भी है। जैसे बुंदेलखण्ड अंचल, आदिवासी अंचल इत्यादि। यहां सरकार उद्योग एवं कौषल विकास केंद्र खोलकर राज्य के इस क्षेत्र के पिछड़े जिलों डिंडौरी, अनूपपुर, मंडला, झाबुआ, अलीराजपुर, बैतूल, पन्ना, टीकमगढ़ के बेरोजगार युवकों की रोजगार की समस्या को हल करनें का काम जिम्मेदारीपूर्वक सुनिष्चित करे।
पर्यटन की दृष्टि से मध्यप्रदेष तेजी से उभरता हुआ प्रदेष साबित हुआ है। पिछले कुछ वर्षों में राज्य ने अपने पर्यटन स्थलों को विष्व पटल पर पहुंचाया है। राज्य में ऐसे कई और क्षेत्र भी है जहां कि पारंपरिक जीवन शैली, ऐतिहासिक धरोहरें, मेले, उत्सव है, जिन्हें हम आगे लायें तो इस क्षेत्र में भी हम सफलता के नये आयाम स्थापित कर सकेंगे। बुंदेलखंड जैसे पिछड़े इलाकों को भी पर्यटन के माध्यम से विकसित किया जा सकता है। पन्ना और टीकमगढ़ जिले राज्य के पर्यटन विकास में सहायक बन सकते है। जैन तीर्थदर्षन की दृष्टि से टीकमगढ़ और पन्ना टाईगर रिजर्व के साथ जिले के भव्य मंदिरों, प्राकृतिक संुदरता को देष के पर्यटन मानचित्र पर लाकर पन्ना जिले के विकास और राज्य पर्यटन विकास को भी गति दी जा सकेगी। इसके साथ ही छिंदवाड़ा, होषंगाबाद जैसे जिले भी प्राकृतिक एवं आदिवासी परंपराओं से पर्यटन विकास के लिए अपना एक अलग स्थान रखते है। गुजरात ने जिस तर्ज पर पर्यटन विकास किया है, वह भले ही गुजरात राज्य का कोई मेला, मंदिर, उत्सव, पारंपरिक आयोजन हों उसी तर्ज पर प्रदेष के समस्त छोटे से छोटे उत्सव, मेले, मंदिरों को पर्यटन विकास के माध्यम से आगे लाकर स्वर्णिम मध्यप्रदेष बनानें की परिकल्पना को साकार करनें में मदद मिल सकती है।
प्रदेष की खेती-किसानी अपने स्वर्णिम युग को देख रही है, दो बार मिले कृषि-कर्मण पुरस्कार, देष में सर्वाधिक कृषि विकास दर ने प्रदेष के किसानों के हौंसले बुलंद कर दिये है। लगातार बढ़ रहे सिंचाई के रकबे को 26 लाख हेक्टेयर तक पहुंचा दिया गया है। नदी जोड़ो अभियान से सिंचाई हेतु नहरें बनाकर सरकार ने अनुपम उदाहरण प्रस्तुत किये है। प्रदेष के किसानों को जीरों प्रतिषत ब्याज पर मिल रहे कर्ज के हौंसले एवं उत्साह ने मध्यप्रदेष को कृषि क्षेत्र में हरियाणा और पंजाब जैसे राज्यों से भी आगे पहुंचा दिया है। इतना ही नहीं अगर मूलभूत सुविधाओं जैसे-बिजली, सड़क और पानी पर षिवराज सरकार ने संवेदनषीलता के साथ विकास कार्य नहीं किये होते तो राज्य में भारतीय जनता पार्टी की तीसरी बार सरकार का गठन होना नामुमकिन था। प्रदेष के षिक्षा स्तर को सुधारने में षिवराज सरकार ने अब तक जो प्रयास जमीनी स्तर पर किये है उससे एक मजबूत षिक्षा प्रणाली का आधार सुनिष्चित हो गया है। इस दिषा में मुफ्त षिक्षा, साईकिल वितरण, गणवेष, मध्यान्ह भोजन, पाठय-पुस्तकें और षिक्षा ऋण गारंटी जैसी योजनाओं को देकर राज्य के छात्र-छात्राओं को आगे निकलनें में सहायता प्रदान की है। परन्तु उच्च षिक्षा हेतु हमें भोपाल, इंदौर, ग्वालियर व जबलपुर जैसे महानगरों से बाहर निकलकर छोटे-छोटे जिलों में बड़े बदलाव करनें की आवष्यकता है। राज्य के छात्रों को रोजगार आसानी से प्राप्त हो सके, इसके लिए अभियांत्रिकी महाविद्यालयों में सरकारी प्लेसमेंट की नीति पर ध्यान देने की जरूरत है।
मध्यप्रदेष में विकास के जो बड़े बदलाव देखे जा रहे है उसमें स्वास्थ्य सेवाओं का भी बदलता स्वरूप एक महत्वपूर्ण स्थान रखता है। कुपोशण जैसी समस्याओं से निपटने के लिए प्रदेष सरकार भले ही जमीनी स्तर पर काम कर रही हो, लेकिन कहीं न कहीं सरदार वल्लभभाई निःषुल्क दवा वितरण योजना, दीनदयाल उपचार योजना, जननी सुरक्षा योजना, 108 सेवा जैसी योजनाओं ने प्रदेष की जनता को मिल रहे स्वास्थ्य सेवाओं में सुधार किया है। दो दिन पूर्व प्रारंभ हुई राज्य स्वास्थ्य सेवा गारंटी योजना द्वारा प्रदेष भर में 17 स्वास्थ्य सेवाओं की गारंटी सरकार के द्वारा ली जा रही है। प्रदेष में प्रांरभ हो चुके अखिल भारतीय आयुर्वेद संस्थान (एम्स) के साथ-साथ और भी कई बड़े चिकित्सा संस्थान प्रदेष के चिकित्सा विकास में अपना योगदान सुनिष्चित कर रहे है। ये संस्थान और प्रदेष सरकार की स्वास्थ्य संबंधी योजनाएं भलीं-भांति जमीनी स्तर पर सुचारू रूप से फलीभूत हो जायें तो प्रदेष स्वास्थ्य सेवाओं में भी अग्रणी राज्य बनने में सफल हो जायेगा।
मध्यप्रदेष इस वर्ष अपना 59वां स्थापना दिवस मनाने जा रहा है। राज्य के उज्जैन, ग्वालियर, भोपाल, मांडू, पचमढ़ी, खजुराहो, चित्रकूट, सांची जैसे पर्यटन स्थलों को देखकर हमें अहसास होना चाहिए कि हम देष के एक पारंपरिक तौर पर विकसित राज्य के वासी है। बुंदेलखंड, बघेलखंड, मालवा-निमाड़, महाकौषल में फैली कई रियासतों के गौरवषाली इतिहास को पढ़कर यह समझना चाहिए कि यह हृदय प्रदेष कितने बलिदानों और त्याग के बल पर बना है, इसे बेहद संवेदनषीलता के साथ समझने की आवष्कता है। प्रदेष में फैले देष के सर्वाधिक जंगल क्षेत्र, पेंच, पन्ना, बांधवगढ़, कान्हा जैसे टाईगर रिजर्व ने हमें प्रदेष के जंगलों में विचरण करते वन्य प्राणियों के साथ रहनें का अवसर प्रदान किया है, हमनें जंगलों को सुरक्षित करनें के प्रयासों में सरकार के साथ सहभागी बनने की जरूरत है। देष के सर्वाधिक आदिवासी बाहुल्य क्षेत्र भी प्रदेष के पास है, यहां रह रहे हमारे आदिवासी भाईयों-बहनों को विकास की मुख्यधारा में लाने में हम कितने सहायक हो सकते है यह एक सोचने का विषय है। सरकारें अपने प्रयास करती रहती है, राज्य और राष्ट्र के विकास में हमें भी अपनी जिम्मेदारियों को परिलक्षित करना चाहिए। स्वर्णिम मध्यप्रदेष की परिकल्पना को साकार करनें में सरकार के साथ हृदय प्रदेष के वासी शामिल हो जायें तो देष का सर्वाधिक विकसित राज्य बनने में मध्यप्रदेष को ज्यादा समय नहीं लगेगा।